चन्द्रशेखर जन्मदिवस विशेषांक

"मन तो मेरा भी करता है झूमूँ , नाचूँ, गाऊँ मैं आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठा हूँ आजादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठा हूँ घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं उन लोगों को z सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं जो भारत को बरबादी की हद तक लाने वाले हैं वे ही स्वर्ण-जयंती का पैगाम सुनाने वाले हैं आज़ादी लाने वालों का तिरस्कार तड़पाता है बलिदानी-गाथा पर थूका, बार-बार तड़पाता है क्रांतिकारियों की बलि वेदी जिससे गौरव पाती है आज़ादी में उस शेखर को भी गाली दी जाती है राजमहल के अन्दर ऐरे- गैरे तनकर बैठे हैं बुद्धिमान सब गाँधी जी के बन्दर बनकर बैठे हैं इसीलिए मैं अभिनंदन के गीत नहीं गा सकता हूँ | मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ| | इससे बढ़कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी आजादी के परवानों पर घात नहीं हो सकती थी कोई बलिदानी शेखर को आतंकी कह जाता है पत्थर पर से नाम हटाकर कुर्सी पर रह जाता है गाली की भी कोई सीमा है कोईमर्यादा है ये घटना तो देश-द्रोह की परिभाषा से ज्यादा है सारे वतन-पुरोधा चुप हैं कोई कहीं नहीं बोला लेकिन कोई ये ना समझे कोई खून नहीं खौला मेरी आँखों में पानी है सीने में चिंगारी है राजनीति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी है सुनकर बलिदानी बेटों का धीरज डोल गया होगा मंगल पांडे फिर शोणित की भाषा बोल गया होगा सुनकर हिंद - महासागर की लहरें तड़प गई होंगी शायद बिस्मिल की गजलों की बहरें तड़प गई होंगी नीलगगन में कोई पुच्छल तारा टूट गया होगा अशफाकउल्ला की आँखों में लावा फूट गया होगा मातृभूमि पर मिटने वाला टोला भी रोया होगा इन्कलाब का गीत बसंती चोला भी रोया होगा चुपके-चुपके रोया होगा संगम-तीरथ का पानी आँसू-आँसू रोयी होगी धरती की चूनर धानी एक समंदर रोयी होगी भगतसिंह की कुर्बानी क्या ये ही सुनने की खातिर फाँसी झूले सेनानी ??? जहाँ मरे आजाद पार्क के पत्ते खड़क गये होंगे कहीं स्वर्ग में शेखर जी केबाजू फड़क गये होंगे शायद पल दो पल को उनकी निद्रा भाग गयी होगी फिर पिस्तौल उठा लेने की इच्छा जाग गयी होगी केवल सिंहासन का भाट नहीं हूँ मैं विरुदावलियाँ वाली हाट नहीं हूँ मैं मैं सूरज का बेटा तम के गीत नहीं गा सकता हूँ | मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ| | महायज्ञ का नायक गौरव भारत भू का है जिसका भारत की जनता से रिश्ता आज लहू का है जिसके जीवन के दर्शन ने हिम्मत को परिभाषा दी जिसने पिस्टल की गोली से इन्कलाब को भाषा दी जिसकी यशगाथा भारत के घर-घर में नभचुम्बी है जिसकी थोड़ी सी आयु भी कई युगों से लम्बी है जिसके कारण त्याग अलौकिक माता के आँगन में था जो इकलौता बेटा होकर आजादी के रण में था जिसको ख़ूनी मेहंदी से भी देह रचना आता था आजादी का योद्धा केवल चना-चबेना खाता था अब तो नेता सड़कें, पर्वत, शहरों को खा जाते हैं पुल के शिलान्यास के बदले नहरों को खा जाते हैं जब तक भारत की नदियों में कल-कल बहता पानी है क्रांति ज्वाल के इतिहासोंमें शेखर अमर कहानी है आजादी के कारण जो गोरों से कभी लड़ी है रे शेखर की पिस्तौल किसी तीरथ से बहुत बड़ी है रे ! स्वर्ण जयंती वाला जो ये मंदिर खड़ा हुआ होगा शेखर इसकी बुनियादों के नीचे गड़ा हुआ होगा मैं साहित्य नहीं चोटों का चित्रण हूँ आजादी के अवमूल्यन का वर्णन हूँ मैं दर्पण हूँ दागी चेहरों को कैसे भा सकता हूँ मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ ______________________ अंतिम पंकतिया उन शहीदों को सलाम ! _____ जो सीने पर गोली खाने को आगे बढ़ जाते थे, भारत माता की जय कह कर फ़ासीं पर जाते थे | जिन बेटो ने धरती माता पर कुर्बानी दे डाली, आजादी के हवन कुँड के लिये जवानी दे डाली ! वे देवो की लोकसभा के अँग बने बैठे होगे वे सतरँगी इन्द्रधनुष के रँग बने बैठे होगे ! दूर गगन के तारे उनके नाम दिखाई देते है उनके स्मारक चारो धाम दिखाई देते है ! जिनके कारण ये भारत आजाद दिखाई देता है अमर तिरँगा उन बेटो की याद दिखाई देता है ! उनका नाम जुबा पर लो तो पलको को झपका लेना उनको जब भी याद करो तो दो आँसू टपका लेना उनको जब भी याद करो तो दो आँसू टपका लेना.... वेङिया

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